मोदी-शाह को पटखनी की योजना चुनाव के पहले बनी थी?


राजेश सिरोठिया
दोपहर मेट्रो
मुंबई। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने चुनाव के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को पटखनी देने की योजना क्या विधानसभा चुनाव के पहले ही बना ली थी?  भाजपा के साथ सीटें साझा करके चुनाव लड़ो और बाद में कांग्रेस एनसीपी की मदद से सरकार बनाओ।
  यह बात चौंकाने वाली जरूर लग सकती है लेकिन मुंबई में भरोसेमंद सूत्रों की बात पर यकीन करें तो यही बात निकलकर सामने आ रही है। दरअसल  2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के साथ मिलकर खासी कामयाबी के  बाद जब शिवसेना को केंंद्र में तवज्जो नहीं मिली तभी से ठाकरे के मन में भाजपा के दोनो शीर्ष नेताओं को सबक सिखाने का ख्याल जन्म ले रहा था। ठाकरे की इस योजना को अंजाम देने के लिए दो नेताओं की भूमिका काफी अहम रही है। पहला संजय राऊत और दूसरी  कांग्रेस से शिवसेना में आई प्रियंका चतुर्वेदी। संजय राऊत ने एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार को  तैयार किया और प्रियंका ने शिवसेना और राहुल गांधी को।
     लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिली बड़ी कामयाबी के बाद शिवसेना को यह अंदाजा था कि महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव यदि वह भाजपा से अलग होकर लड़ेगी तो उसे बड़ा नुकसान होगा। चुनाव के पहले कांग्रेस और एनसीपी से गठजोड़ करके चुनाव लडऩे में और भी भारी नुकसान होता और उल्टे भाजपा अपने बूते पर सरकार बनाने में भी कामयाब हो सकती थी। इसी के चलते तय स्क्रिप्ट के मुताबिक शिवसेना ने ज्यादा से ज्यादा सीटें गठबंधन करके हासिल की, ताकि भाजपा अपने बूते पर सरकार बनाने लायक ही न रहे। दूसरा मोदी-फडऩवीस के चेहरे की मदद से सीटें हासिल की जाए।
   सूत्रों के मुताबिक शिवसेना के भाजपा से अलग होने की योजना के चलते ही नतीजे आने के साथ आदित्य ठाकरे का नाम भी मुख्यमंत्री के लिए योजना के तहत उछाला गया। शिवसेना को पता था कि आदित्य के नाम पर भाजपा कतई राजी नहीं होगी। शिवसेना नेता संजय राऊत ने यह रट लगाना शुरू कर दी कि मुख्यमंत्री शिवसेना का ही होगा। जैसे ही भाजपा ने कदम खींचे उद्धव ठाकरे का नाम सामने आया और पवार और कांग्रेस नेताओं ने उन्हें समर्थन की  घोषणा कर दी। कांग्रेस ने यह सोचकर कि भाजपा को सत्ता से बाहर रखने के साथ ही सत्ता में भागीदारी और साफ्ट हिंदुत्व की दिशा में चार कदम और आगे बढऩे से उसा राजनीतिक लाभ भी होगा। सूत्रों की माने कि लोग महाराष्ट्र में अस्थिर सरकार की दुहाई भले देते रहें लेकिन शिवसेना कांग्रेस और एनसीपी का गठजोड़ अपने नफे के लिए लंबे समय तक एकजुट बना रहेगा।